सुबह तकरीबन साढे सात का वक़्त है ...शहर का ये छोर इस वक़्त मसरूफ रहता है ... पाँच सौ मीटर या एक किलोमीटर के उस दायरे में तीन-चार बड़े बड़े पबिलिक स्कूल है , वही एक सड़क पर -बड़ी -छोटी कई किस्मों की गाडिया ...कही ड्राईवर का खिड़की से झांकता उनीदा चेहरा ..कही ट्रेक सूट में बेटे के बालो को तरतीब से लगाता बाप .....कही स्कूल के गेट पर किन्ही नन्हे कदमो का दूर तक पीछा करती किसी मां की नजरे ...स्कूल बस से उतरते बच्चो का शोर .....इन सबके बीच सड़क के उस पार ...तमाम भीड़ से गुजरती एक साइकिल ...उसके डंडे पर बनी एक छोटी सी गद्दी पर दो चुटिया ओर आँखों में काजल लगाये.....वो बच्ची साइकिल के कोने पर लगी घंटी को जोर से बजाती है ...फ़िर सर उठाकर अपने कंधे पर उसका स्कूली बस्ता टाँगे उसके पिता को मुस्करा कर देखती है.....उसका पिता उसके कान में कुछ कहता है...फ़िर घंटी को बजाता है....
बड़ी बड़ी गाडियों के इंजन ओर हार्न के बीच उस घंटी की आवाज ........जैसे जिंदगी अपनी शिनाख्त करती है !
एक बूढे नायक के पेट दर्द की मेडिकल रिपोर्ट मीडिया देश को हर घंटे ख़बर दे रहा है .. इस दौरान सौ करोड़ की इस आबादी वाले उस देश में जिसमे अभी अभी परमाणु करार पर हस्ताक्षर अधिक्रत रूप से हो गये है ....७० फीट गहरे बोरवेल में गिरे दो साल का वो नन्हा बच्चा जिंदगी से अपनी जंग हार गया है ..... |