मेरे घर मे दख़ल देती है..
अलसायी सी मेरी नींद
उबासी लेकर उसको उलहाना देती है.
तुलसी का वो पोधा ,जो आँगन मे खड़ा है
धीमे लहज़ो मे
पानी ना मिलने की शिकायत करता है।
मेज़ पर रखी किताब के पन्ने हवा मे फडफ़ड़ाते है.......
पता नही.......
सबको कैसे मालूम है..
आज मेरी छुट्टी है.
चलते चलते एक त्रिवेणी - जाने क्या निस्बत है कि शब जाते जाते रोज याद का कासा छोड़ जाती है ..... हर सुबह एक लम्हा पड़ा मिलता है |