ग़लतफ़हमी मत पालिये..... अपने चारो ओर नजर डालिए ...आप कौन से फ्लोर पे खड़े है .तीसरे चौथे .....या .......किस्मत की लिफ्ट कभी खाली नहीं मिली आपको ....ओवरलोड का इशारा लिफ्टमेन करता ओर आप खिसियाये से बाहर निकल कर एक ओर खड़े हो जाते या अपने सामने बंद होते लिफ्ट के दरवाजे को देखते ..... फिर सीडिया दर सीडिया चढ़कर कर आप जिंदगी की बिल्डिंग में हर फ्लोर में हांफ हांफ कर चढ़ते ...आखिरी सीडी पर सफ़ेद कपड़ो में देवदूत मुस्कराते बोलते ..."यू आर लेट माय सन ...पर लिफ्ट ....आपके शब्द मुंह में रह जाते ..."नो आरगयुमेंट माय सन" .....
बरसो से आप उस मंदिर को ढूंढ रहे है .... जिसकी घंटी पकड़ कर (भले ही थोडा उचक कर )आप कह सके "आज खुश तो बहुत होगे तुम "....वैसी घंटी ओर वैसी एक मूर्ति देख एक दिन .आप पोज़ लेते है ..शर्ट को बाहर निकल कर गाँठ मारते ही है .कि ........ मंदिर का पुजारी ...यहाँ केवल क्रेडिट कार्ड चलता है बेटे .... .........
निराश हताश आप फ्लेश्बेक में चले जाते है....
जिस क्योशचन को छोड़ आपने रात भर सारी किताबे घोटी है .... अगली सुबह पेपर में सबसे पहले वही दिखता .. ..ओर हॉल में चित्रगुप्त का अट्हास गूंजता ......ओर फिर वो .....
आपकी पहली ऍ. सी यात्रा ...राजधानी ट्रेन चेयर कार ...दस घंटे का सफर .....एक कमसिन खूबसूरत हसीना कंधे पर बेग टाँगे दूर से आती दिखती है ..आपके दिल की धड़कन बढती है....धीरे धीरे अहिस्ता आहिस्ता वो आपकी बराबर वाली सीट पर बैठती है....आप का दिल अभी बाग़ बाग़ हुआ ही है ...की अचानक एक मोटे पसीने में गंधाये अंकल एंट्री मारते है मैडम ये मेरी सीट है.....बिजली कड़कने की वही चिरपरिचित आवाज ...कर्टसी रामानन्द सागर .... आप इधर उधर देखते है ..ट्रेन की खिड़की के बाहर मुस्कराते चित्रगुप्त ...अभी तुम्हारा टर्न नहीं है वत्स .
वो पहला ..नहीं चौथा या शायद पांचवा छोडिये प्यार कहाँ किसी गणित में बंधता है ...रात भर कागजो में उलझकर आप ग्रीटिंग कार्ड पर कुछ जुमले लिखने में सफल हुए है ..केवल आँखों पर चुनकर फ़िल्मी गीतों की एक केसेट तैयार कर .उलटी शेव खीचकर आप वही काली शर्ट पहन कर (जिसमे आपके दोस्त कहते है बड़ा स्मार्ट दिखता है )..लोकर रूम में एक गुलाब हाथ में लिए उसे "बर्थ डे विश" करने पहुँचते है .पर उन्हें किसी ओर से गले मिलता देख आपका दिल " रंगीला "के आमिर खान की तरह टूटा है बस..... फर्क इतना है की कोई बेक ग्राउंड म्यूजिक नहीं बजता ..निराश .टूटे हुए ..धीमे कदमो से आप बाहर निकलते है साइड में चित्र गुप्त खड़े है ..कभी कभी वो भी रियायत देते है इसलिए मुस्कराते नहीं ..आप उनसे लिपट कर रोना चाहते है...पर वे "अभी ड्यूटी पर हूँ" कहकर पीठ थपथपा देते है.....
ओर अब जब लगता है टॉप फ्लोर का सफ़र बस कुछ सालो में तय हो जायेगा .....
उमस भरी दोपहरी में
बादल का एक टुकडा आकर
पडोसी की छत भिगो गया
अजीब बेवफाई है !
ये शायर ओर कवि बड़े खतरनाक होते है ... साले ....सलीके से गाली देते है ..ओर हम शेर समझ कर ताली बजा देते है... फ्लाईट में ...एक पतले कम गंधाये इन्सान का बिन मांगे दिया फलसफा.
ओर ऊपर वाला फोटोग्राफ बेंगलोर के एअरपोर्ट से चलती गाडी से मोबाइल से ..