बनारस के उस रस्ते पे शुरुआत में सीधे हाथ पर में एक गुरुद्वारा है...थोडा आगे चलने पर चर्च .....सबके जुदा जुदा भगवान् है ..मै अपने वालो की राह पर हूँ...रास्ते में नंगे पैर चलते कई लोग दिखते है ....मालाओं ओर पूजा का सामान बेचती ढेरो दुकानों को नजर अंदाज करते हुए ..कोई साउथ इंडियन परिवार है ...कुछ बुदबुदाता हुआ ..लकडी के फ्रेम में बनी उस चौरस मशीन में मुझसे आगे ....एक पीठ पर लगभग बारह साल की लड़की है ...शायद उसका पिता है....तकलीफ को किसी अनुवाद की आवश्यकता नहीं होती .... उस लड़की के चेहरे से पढ़ी जा सकती है ...... मशीन की वही जानी पहचानी सी आवाज .... सीने में जमा दर्द मगर डिटेक्ट नहीं करती ....कतार में लोग है...यंत्रवत चलते हुए ...अजीब बात है मेरा मन भगवान् में नहीं है ....पांच या दस सेकंड में उसकी मूर्ति के सामने लगभग धेकेला गया हूँ... बंदूको के साये में हिफाजत से घिरे भगवान् से मै क्या मांगू ?फिर धकेल कर आगे कर दिया हूँ ...आगे .कोई पंडा एक सौ एक का दान मांगता है... एक रुपया नहीं है ...सौ के नोट को वो मुट्ठी में दबा लेता है...दाये बाये लोग झुके हुए है ....अजीब बात है अपने ही देश में अपने ही भगवान् को बंदूको के साये की जरुरत है .हम कहाँ जा रहे है ?
बाहर सूरज की रोशनी में घाट बेतरतीब सा नजर आता है नाव में एक ओर परिवार है...तीन साल की उनकी बिटिया को मेनिंगो -मायलोसिल की एक बीमारी है ..अपनी उम्र से ज्यादा अब तक उसके ओपरेशन हो चुके है ...उसकी दादी गंगा का पानी उसके मुंह में डाल रही है.. ...मै गंगा का पानी देखता हूँ......मटमैला सा.....नाव का माझी बताता है रविदास घाट का पुनः - निर्माण हुआ है इस सरकार के आने से ...वो क्या चीज है जो इन लोगो कों
बी एच .यू के मेडिकल से जुदा इस मंदिर ओर इस नदी की ओर खींच लाती है ....आस्था ....श्रद्धा ...या हालात की बेबसी में कोई उम्मीद की चाह? तुम कहाँ हो ईश्वर ????
बाहर सूरज की रोशनी में घाट बेतरतीब सा नजर आता है नाव में एक ओर परिवार है...तीन साल की उनकी बिटिया को मेनिंगो -मायलोसिल की एक बीमारी है ..अपनी उम्र से ज्यादा अब तक उसके ओपरेशन हो चुके है ...उसकी दादी गंगा का पानी उसके मुंह में डाल रही है.. ...मै गंगा का पानी देखता हूँ......मटमैला सा.....नाव का माझी बताता है रविदास घाट का पुनः - निर्माण हुआ है इस सरकार के आने से ...वो क्या चीज है जो इन लोगो कों
बी एच .यू के मेडिकल से जुदा इस मंदिर ओर इस नदी की ओर खींच लाती है ....आस्था ....श्रद्धा ...या हालात की बेबसी में कोई उम्मीद की चाह? तुम कहाँ हो ईश्वर ????