वो चेहरा बिना मुस्कान का चेहरा है .. ...रिकंसट्रक्ट चेहरे ऐसे हो होते है बिना मुस्कान ओर गम के ...
९८ में श्रीनगर में किसी माइन पे उसकी बटालाइन में से किसी का पैर पड़ा था ...वो भी हवा में उडा नीचे आया तो एक पैर ,हाथ की दो अंगुलिया ओर अपना चेहरा खो चूका था ....कजिन का दोस्त है ..आपकी आवाज में जरा सी नरमी उसे चौकन्ना कर देती है ...आँखे एक्स रे की तरह आहिस्ता आहिस्ता आपकी चमड़ी के भीतर कही उतर कर जैसे तलाश करती है की सहानुभूति का कोई अंश तो नहीं..... एक कोने पे दो शराबी रेस्तरा वाले से लड़ रहे है ..उसकी निगाह उधर उठी है मेरी भी...क्या सोचता होगा ये ?....एक काफी पीकर वो विदा लेना चाहता है विदा लेते समय समय कुर्सी से उठना चाहता हूँ पर उस आवाज में अजीब सी ठंडक है की मै उठता नहीं ...........
धातु के छोटे छोटे टुकड़े इंसान की जिंदगी में कितना खलल डालते है ... इंसान को ख़त्म करने के नए नये नुस्खे ....उसको गये करीब दो घंटा हुआ है...पर मन में अभी भी धातु के टुकड़े फंसे हुए है ...अचानक दिल में ख़याल आता है उस आदमी का .. ..जिसने ६ अगस्त १९४५ हिरोशिमा पर बम गिराया ... क्या सात अगस्त से उसकी दुनिया में सूरज उसी तरह उगा होगा ...किसी नन्हे बच्चे को खिलखिलाते देख क्या उसके दिमाग में कुछ सवाल उठे होगे ... ...कम्पूटर पर अंगुली दबती है ......
छह अगस्त १९४५ को वारफील्ड तिब्बेट्स जूनियर .की उम्र महज़ ३० साल थी .. . .उस वक़्त ..उनका कहना था ..उन्हें अपने किये का कोई रिग्रेट्स नहीं है....६२ साल तक वे उसी बेफिक्री की नींद लेकर सोये ....
"there are no Marquess of Queensberry rules in war."
९२ साल की उम्र में उनकी मौत हुई .....क्या उनकी सोच उनकी ट्रेनिंग का नतीजा है ..... युद्ध में .सिपाही पूछता नहीं है....उसकी ट्रेनिंग का मकसद शायद उसके सवालो को ख़त्म करना है ... पर युद्ध के बाद .?क्या हर सिपाही के सवाल ख़त्म हो जाते है पर कुछ सवालो के जवाब कम्पूटर नहीं देता ...
चौबीस मार्च के लिए किसी सफ्हे पे किसी नज़्म की जानिब ढूंढो वक़्त की गलियों में आवारागी के निशान मिलेगे कुछ सालो पे हमारा इख़्तियार आज भी नहीं या यूँ कहिये (रिवर्स त्रिवेणी ) ज़िंदगी क़ी क्रिकेट यूँ चली खुदा मेडन ओवर फेकता रहा किस्मत क्लीन बोल्ड करती रही इस उम्मीद में के अगले कुछ ओवर टी ट्वेंटी की माफिक साबित होगे .. |