बेतरतीब सी कई सौ ख्वाहिशे है ...वाजिब -गैरवाजिब कई सौ सवाल है....कई सौ शुबहे ...एक आध कन्फेशन भी है ...सबको सकेर कर यहां जमा कर रहा हूं..ताकि गुजरे वक़्त में खुद को शनाख्त करने में सहूलियत रहे ...
2009-06-01
वक़्त के पहिंयो से बंधी मुजरिम रूहे
उसने ओर मैंने साइकिल से मोटरसाइकिल का सफ़र साथ तय किया है .....पोस्ट ऑफिस के बाहर कितने कम्पीटीशन के फार्मो पर डाक टिकट लगाकर रजिस्ट्री करायी है .. बाद के कई सालो को हमने जुदा- जुदा तरीके से लांघा है .बीच में जब कभी फुरसत मिली हमने मन की परतो को उधेडा ओर सिया है .
वो फिर फोन पर है.... 'रात को साथ खाना खायेंगे' ..उसकी आवाज में कुछ है जो नोर्मल नहीं है ... ...वो आजकल बाहर पोस्टेड है.....महीने में एक बार घर का चक्कर लगा ही देता है ... रात को हम साथ बैठे है...रेस्टोरेंट के उस कोने में 'होटल केलिफोर्निया ' के बीच वो अपनी उदासी का सबब खोलता है ....
'गाँव मे एक जमीन थी .बहुत ज्यादा नही थी ...केवल ५ लाख मे बिकी ...माँ ओर दोनों बड़े भाई ओर बहन के अलावा छोटे भाई का भी हिस्सा मिलाकर सबके हिस्से १ लाख आया ,तुझे मालूम है छोटा कैसा है....मैं सर हिलाता हूँ.. जानता हूँ उसके छोटे के हालात ठीक नही है ..
सोचता था की इन पैसो से उसे कोई छोटा मोटा बिजनेस करवा दूंगा.... .....उसने सिगरेट सुलगा ली है ..
'भाइयो से कुछ डिसकस करने की सोच ही रहा था कि वहां से वापस घर लौटते वक़्त गाड़ी मे ही मालूम चला ..दोनों भाइयो ने पहले से तय कर रखा था 'कहाँ इन्वेस्ट करना है ....बहन ने भी.....ठंडी सांस .... 'ये बहुत ज्यादा पैसा तो नही था अनुराग......
उसकी आँखे गीली सी है... ८ सालो ने रिश्तो के चेहरे बदल दिए है . .
'जानते हो ..... बीच वाले भैया तो मेरे हीरो हुआ करते थे ' उसकी आवाज भी गीली सी है ....क्या कहूँ ....मै खामोश हूँ ..वे मेरे भी हीरो थे ... ''होटल केलिफोर्निया' ' अब भी बज रहा है .