बेतरतीब सी कई सौ ख्वाहिशे है ...वाजिब -गैरवाजिब कई सौ सवाल है....कई सौ शुबहे ...एक आध कन्फेशन भी है ...सबको सकेर कर यहां जमा कर रहा हूं..ताकि गुजरे वक़्त में खुद को शनाख्त करने में सहूलियत रहे ...
2009-10-01
जिंदगी !तेरे कुछ दिनों को रिवाइंड करना है...
"एयर पोर्ट पे जो सबसे बोर सी शक्ल वाला आदमी नजर आये समझो वो मेरा ड्राइवर है...हिन्दुस्तान में ही आदमी बिना कोमन सेंस के ठाठ से गुजारा कर सकता है ओर वो ठेठ हिन्दुतानी है .... ओर हां गाडी की खिड़की खोलकर सिगरेट पीना .. वरना मेरी बीवी मेरी ऐसी-तेसी फेर देगी.".गाडी बीवी की है .... .प्रशांत ने फोन पर कहा था..बॉम्बे की उस दो दिन की वर्कशॉप की मेरी राते पहले से शेड्यूल्ड हो गयी थी...... "मूर्खों से एक खास दूरी बनाये रखने की विधा का नाम शिष्टाचार है ."..प्रशांत अक्सर ऐसे दार्शनिक जुमले वाजिब समयों पर आपके फोनों में ठेला करता है... .गैर वाजिब समय मतलब....रात के तीन बजे ..ढाई बजे ........ ओर्थोपेडिक वाले एमेर्जेंसियो में रात भर भटकते है मालूम है ...पर वो आज इमरजेंसी में है ये पूरे देश भर में फैले उनके दोस्तों को पता लग जाता था ...
दिन भर की वर्कशॉप के बाद हम तीनो दोस्तों ने मिलना था ....तीसरा राजीव था .....उसे सलेक्टिव एग्रोफोबिया था ...यानी भीड़ से डर .....भीड़ भाड़ वाली जगह वो स्कूटर या बाइक पर अनकम्फर्टेबल हो जाता ..ऐसी जगह अवोइड करता... एक ही जींस को कई दिनों तक पहनकर घूमता... ..पूछते तो कहता .लकी जींस है.... अपने एक सत्तर के मोडल पुराने स्कूटर पे घूमता .....उसको याद करते ही छवि मिश्रा याद आती है ... .जूनियर .सीनियर कई लोग उसके लिए कतार में थे ......ओर .छवि उसके पीछे पागल थी ... छवि के मामी पापा यू एस में थे ...इंडिया में वो अपने दादा दादी के साथ रहकर पढ़ रही थी... पर जाने क्या हुआ उस रोज जब हम लोकर रूम में क्रिकेट खेल रहे थे ...छवि उससे कुछ बात करने आयी थी......जिसके बाद वो गुस्से में थी ....."कावर्ड्स" ...तुम्हारे दोस्त में गट्स नहीं है ...हाउ ही फेस दिस वर्ल्ड आउट साइड दिस केम्पस ....मुझसे बोली थी...मुझे बड़ा अजीब लगा था ..हम दोस्त जानते थे उसे छवि पसंद है.फिर क्या हुआ ? अगले तीन महीने में वो यू एस चली गयी.......
.. कहते है जो आदमी बीस की उम्र में भला होता है वो तीस की उम्र में भी भला ही रहता है ओर चालीस की उम्र में भी .. राजीव शायद जन्म से भला था ...अपने ठेठ भलेपन के बावजूद उसने हमें कई अजीब सी आदते सिखाई जिन्हें शरीफ लोग शरीफाना नहीं कहते .मसलन ..कोल्ड ड्रिंक में एक एक्स्ट्रा आइस क्यूब ओर नमक डालकर पीना ....अंडो की हाफ फ्राई में कुछ इनोवेशन कर टोमेटो फ्राई बनाना ..हेंग ओवर के लिए दही खाना ... अब सोचता हूं प्यार केवल कैम्पस की उस चाहरदीवारी में ही सरवाइव कर सकता है .. .…बाहर की दुनिया की जद्दोजेहद में साले बड़े बड़े गम है .
प्रशांत ने मेरी सहूलियत के लिए गाडी रख छोडी थी ..चूंकि मेरी कांफ्रेंस होटल रेनिसेंस में थी .तो ये तय हुआ की दिन भर वे अपना कामकाज करेगे ओर मै कांफ्रेंस अटेंड करूंगा ...रात को सब इकठ्ठा होगे .
पर दोपहर बाद वर्क शॉप के तीनो टोपिक में कुछ नया नहीं था सोचा शायद राजीव यहां से नजदीक हो... अगला अच्छा टोपिक डेड घंटे बाद था .... .. राजीव को फोन मिलाता हूं…"
.आधा घंटे का रास्ता है अगर ट्रेफिक ठीक रहा तो …तू पहुँच जायेगा वो कहता है ......… तकरीबन पैंतालिस मिनट .... बाद उसे किसी हॉस्पिटल के नीचे खडा पाया "..दो पेशंट है ... राउंड लेना है ...दूसरा दूसरे हॉस्पिटल में है …तू साथ चलेगा मुश्किल से ……पांच मिनट लगेगे …तब तक मै इसको देख आता हूँ मै वही ड्राइवर के साथ रुकता हूँ ..हॉस्पिटल किसी पुरानी इमारत सरीखा सा है बाहर से देखकर लगता नहीं की हॉस्पिटल भी है ...बाहर केवल एक बोर्ड लगा हुआ है ....इंग्लिश के बाद मराठी में ऊपर से कुछ लिखा हुआ . .में ..शायद राज ठाकरे के डर से …पांच मिनट बाद वो नीचे उतर के आता है ..प्रशांत के ड्राइवर को वही छोड़ हमें दूसरे हॉस्पिटल जाना है ...रास्ता सिर्फ कुछ फीट चौडा है एक तंग गली जैसा ...दोनों ओर बनी दुकाने .इतनी तंग की सामने से अगर कोई फॉर व्हीलर आ जाए तो रास्ता ब्लोक हो जायेगा .." वही साली गरीबी ....एप्लास्टिक अनीमिया ...मियां बीवी दोनों मजदूर .....खून तक चढाने के पैसे नहीं .....वो गाडी में बैठते ही कहता है....वो मेडिकल कॉलेज में किसी से बात कर रहा है .उस पेशेंट को एडमिट करवाने के वास्ते ......मै हैरान हूँ के इन तंग गलियों में वो कैसे इतनी तसल्ली से गाडी चला रहा है .....
पर हम खाना नहीं खा पाये ...दूसरे पेशेंट को देखते वक़्त उसकी एक ओर इमरजेंसी कॉल आ गयी..इसलिए मै वापस अपनी कांफ्रेंस वाले होटल आ गया .... ..
रात ९ बजे प्रशांत के घर.....
"..साला बड़े दिनों बाद अपने स्टाइल में पियेंगे ..जग्गू दा के साथ ..यहाँ तो पिछले आठ सालो से बुढढो के साथ पी पी कर बोर हो रहा हूँ ....
राज नहीं आया अब तक "वो पूछता है ....फोन मिला उसको .....
कोई पेशेंट सीरियस है उसका ...मै कहता हूं.....
वो फोन मिलाता है...कहता है आधे घंटे में पहुंचेगा ....तू फ्रेश हो ले .. तकरीबन आधे घंटे हम पाकिस्तान ओर न्यूजीलेंड का मैच देखते है.... करीब एक घंटे बाद वो घर में घुसा है......... 'साले कहाँ था अब तक .....तेरे चक्कर में भूखे बैठे है ....
...खाने का क्या है ..बहुत भूख लगी है ....प्रशांत उसके लिए एक गिलास में वाइन भर रहा है
"मेरा मत बनाना ....कॉल आ सकती है" ..राज मना करता है ...एक पेशेंट सीरियस है ...
राज प्लेट में रखकर खाने लगा है..... प्रशांत के मोबाइल पर नीरव का फोन है....वो राजकोट में है ..बहुत बड़ा सेट अप है ..अकेला मेनेज नहीं कर पा रहा हूँ... राजीव को बुला रहा हूं.....आता नहीं.साला नखरे दिखा रहा है ....उससे .कुछ देर इधर उधर की बाते होती है ......
जाता क्यों नहीं....... अच्छा ऑप्शन है तो ........फोन रखने के बाद मै राजीव से कहता हूँ
वो सिर्फ मुस्कराता है ...
"क्यों साला एगो बीच में आ रहा है ... प्रशांत उससे कहता है ... ...... तू ओर नीरव तो सबसे ज्यादा क्लोज़ थे ..इतना अच्छा पैकेज ओफर कर रहा है ...
... वो चुप है...चुपचाप एक दो कौर मुंह में डालता है ....फिर कहता है
याद है ...६० -७० के आदर्शवादी सिनेमा का भाई होता था … बलराज साहनी टाइप ……भाई ऐसा ही है .……पूरी जिंदगी हम में खप गया ...एक घूंट पानी ...
"उसकी तब नयी नयी शादी हुई थी….. तब ..पापा को पेरालेसिस का अटेक हुआ था...उससे रिकवर नहीं नहीं कर पाये प्राइवेट जॉब.....लिमिटिड आमदनी…. एक पूरा घर अचानक अपनी जिम्मेदारी लिए भाई के सामने आ गया ... स्लम एरिया का बी एम् एस डोक्टर कितना कमा लेगा .वो भी ..जिसमे दया कूट कूट के भरी हो ..... पर वो खीचता रहा दिनों को...हमें अपने आप को .भाभी को.... …… वो स्कूटर ..वो हँसता है .... . सत्तर का मॉडल.... ....भाई का था ..... एक बार कॉलेज आया था .बोला तू इतना पैदल चलता है .तेरे सब दोस्तों के पास बाइक है....अगले दिन भिजवा दिया ... एक ठंडी सांस ......साली कोई जींस मेरे लिए लकी नहीं रही... एक्चुली मेरे पास तब कुल तीन जींस थी ......फिर ...कुछ देर की खामोशी ...प्रशांत घूरकर वाइन में पिघलती आइस को देखता है ….एक घूँट में सारी पीकर ….. उठकर बेवजह की चहलकदमी करता है ...उसकी आदत बदली नहीं अभी ...कोलेज टाइम में भी बैचेनी में पूरे कमरे में घूम जाता था ..
. भाभी की आंखे चुभती थी उन दिनों ..वो कुछ कहती नहीं थी पर उनकी आंखे जैसे तहरीर करती थी अब भाई ..४५ की उम्र में पहला अटेक....हार्ट के पेशेंट बन गए है .... थक गये है बोझा ढो के हम सब का...इत्ते सालो से ....अब मेरा टर्न है... यार…."
हम तीनो के बीच खामोशी फिर पसर गयी है .. प्रशांत ने मेरे सिगरेट के पेकेट से सिगरेट जलायी है ... सिर्फ सिर्फ जग्गू दा अकेले गा रहे है...."अपनी आग को जिंदा रखना कितना मुश्किल है "
"तेरी एक बेटी है न तीन साल की …क्या नाम है उसका "? ……मै माहोल को चेंज करने की कवायद में हूँ....
"ये ....वो मोबाइल में फोटो दिखाता है ...".छवि "!
रोज उचककर देखता था जो इस जानिब
वक़्त को फलांगने की बेजा कोशिश में .....
आज सुबह उसी लम्हे ने दम तोडा है
पुनश्च: कायदे में तो इसे यूं लिखा जाना चाहिए था ..जिंदगी तेरे कुछ दिनों की रिवाइंड करना है ताकि मै उन्हें तरतीब से लगा सकूं.आपके तो मालूम नहीं पर वाकई मेरे पास कई ऐसे दिन पड़े है जिन्हें रिपेयर की जरुरत है !