2009-11-02

बुकमार्क करके रखा एक दिन

फारुख   हमारी   सूमो का ड्राइवर   है .जो   जो पिछले चार दिनों से हमारे साथ  . है.... अपनी सुबह की शुरुआत  वो  दूसरे   ड्राइवरो की माफिक  किसी  भज़न  या  सूफी   संगीत   से  से नहीं करता है .."कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है "से करता है ..आज .उसके साथ उसका बेटा भी है ...दस साल का ..मै नाम पूछता हूँ तो वो शरमा के बताता है ."शाहरुख़ "....उसके हाथ में एक पेन ड्राइव है जिसमे उसके पसंदीदा गाने भरे हुए है ... टेक्नोलोजी अपना रास्ता खुद इख्तियार करती है..नंगी आँखों से देखा हुआ प्रत्यक्ष सच गर एक सवाल का जवाब देता है तो दूसरे कई सवाल भी  जेहन  में खड़े करता है   यूँ भी  देश के इस हिस्से में जब आप आते है तो आपके पास ढेरो सवाल होते है……कश्मीर के हर आदमी से आप एक सवाल  पूछना चाहते है  ......छतो पर से  डिश एंटीना झांकते दिखते है .सड़क किनारे अपने बेटे का हाथ पकड़ कर स्कूल बस का इंतज़ार करता पिता .रात की नींद की खुमारी  को तोड़ने के लिए उबासी लेते दुकानदार .. ... कुल मिलाकर   सुबह किसी शहर की आम सुबह की माफिक है बस हवा थोडी सर्द है ओर सूरज थोडा ज्यादा हसीन.....
..पहलगाम  के पूरे रास्ते  दुकानों  पर ,मुंडेरों पे  ....चौराहों पर .कही कही खेतो के बीच .... वो   हरी वर्दी   ओर   राइफल   थामे  खडा है मुस्तेदी से....ये जानते हुए भी के उसके आस पास के लोग उसे पसंद नहीं करते है ... वो बेपरवाह से खडा है ...कही कही चोराहो पे वे दो की जोड़ी में है ....... रास्ते में कई गांव पड़ते है ..फिरन पहने  जवान बूढे तमाम लोग ... कही कही फिरन के नीचे जींस भी दिख जाती है ..रास्ते में कुछ  आर्मी के ट्रक  काफिलों  की शक्ल में  गुजरते है ...उनमे से  एक जवान को  मै सेल्यूट    करता हूँ.....मेरे सेल्यूट   का वो जवाब देता है ....देखकर   फारुख का बेटा   उसे   कश्मीरी में  कुछ कहता है .......मुझे सिर्फ   सेल्यूट समझ   में  आता है  ....क्या इन बच्चो के मन में सेना के जवानो के लिए कुछ है? ..पहलगाम   बहुत खूबसूरत   है ..एकदम किसी लेंड्सस्केप  जैसा ...इतना की आपका कैमरा हाथ उठा देगा ..के .क्या क्या समेटूं ! .नाथू की रसोई वहां हिट है ..खूबसूरत कश्मीरी लड़किया जो ना जाने कितनी  मोडलो को इन्फीरियरटी कोम्प्लेक्स दे सकती है मोर्डन लिबास में नाथू की रसोई   में अंग्रेजी में  राजमा चावल या खीर मांगती है ....बेफिक्री से जीने की ललक यहाँ भी  मौजूद है ....उन   आंखो   में .देखी  जा सकती है ......खाना इतना लजीज है के आप उसके कूक को शुक्रिया कहकर ही निकलेगे ....लौटते  वक़्त शाम होने लगी   है ... ....पर वो अब भी वही खडा है ..राइफल   थामे.....नाम मायने नहीं रखता ... सिर्फ हरी वर्दी ...
. केंट एरिया है ..यहां   भी  जाम  लगता .. है ....एक  बस दिखती है ..देल्ही पबिलिक स्कूल श्रीनगर....  चार  पांच बसे ... ... में   अपनी गाडी   से ही बस की  फोटो लेता हूं .. जाने क्यों मन में एक अजीब सा ख्याल आता है. आप देश के किस हिस्से में पैदा होते है ...कभी कभी ये बात भी आपकी सोच का एक दायरा बनती है ..अपने तर्क बनाती है.....होटल लौटकर  एन डी टी वी खोलकर देखता  हूं है ..देश के एक  संचार मंत्री  पर करोड़े रुपये के डकारने के आरोप  है ....अपनी अपनी मनोव्रतियो के विकार   में ....अपने अपने पूर्वाग्रह  अपने मन में समेटे ..दंभ ओर अहं की गुर्राहटो के साथ  जिंदगी  में  शब्दों  की सियासत  का  भौंडा चौपड़ खेलते ...... हम लोग  उस जवान के आगे कितने छोटे है ....कितने छोटे .......




शाम ओर रात के बॉर्डर पे मेजर से मुलाकात होती है ...बुलंद  आवाज में ठहाका लगाने वाला मेजर .साहिरो .बशीर बद्रो...ओर मुनव्वरो  पर नहीं अपनी कोमिक्स के कलेक्शन पर बात करता है ...कश्मीर.... आर्मी ..कश्मीरियत ..स्कूल कोलेज  बांटने   को   कई किस्से है ...पर तफसील से..  कहने सुनने का वक़्त नहीं है .  .मोबाइल बीच  बीच  में  आवाज देता  है .....वक़्त को कुछ देर खींचकर ....मेजर  विदा  लेता है ....उसके हाथ  में बंधे प्लास्तर पर  मै "बेस्ट ऑफ़ लक" लिखना भूल गया हूं   ..  .सो  उस शाम के लिए   यहां  फराज साहब का एक शेर  चस्पा है....तुम्हारे लिए मेजर .....

"बजाहिर एक ही शब है फराके -यार मगर
    कोई गुजारने बैठे तो उम्र सारी लगी "

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