2010-01-02

एबस्ट्रेक्ट सा कुछ !!!!

धूप पिछले दो दिनों से छुट्टी पे है ..परिंदे भी....सर्दियों का आफती धुंया नीचे उतर कर उंघती स्ट्रीट लाइटों  को दिन की शिफ्टों में काम करा रहा है   . ...  ... हर आधे घंटे  में अब भी कोई एस. एम् एस नए साल की बाबत इन-बॉक्स में दाखिल होता है ... मन करता है ..कोने में  खड़े उस आदमी से बस  दो कश मांग लूं....ऐसे मौसम में पोशीदा हुई कई छोटी छोटी ख्वाहिशो की  तलब बार बार  उठती है . .. .कुछ ख्याल किसी सफ्हे की तन्हाई को डिस्टर्ब करते है.... ..
(१)"अल्ट्रेशन "
उधेड़ के पुराने किस्सों को
रंग बिरंगे धागों से
मन माफिक जगह रख देता है .....
बड़ा हुनर है उसके हाथ में !!

(२)"इन्वर्सली पर्पोशनल"
मै उम्र का पैमाना
हाथ में लिए
जब भी
मापने बैठा हूँ
"आदमियत"....
हर बार पहले से छोटी मिली  है!!


(३)"औरत

पल्टो रवायतो के कुछ ओर सफ्हे
गिरायो इक ओर रूह
दफ़न कर दो एक ओर लाश
तहज़ीब के लबादे मे.........
ख़ामोश रहकर भी किस कदर डराती है.


ओर अब मोहब्बत !!
ग्यारह बजने में  दस मिनट थे

ट्रेन ने "व्हिसल" दी थी तब
प्लेटफोर्म नंबर एक पर
भरी भीड़ में
मेरे नजदीक आकर 
कानो पे  तुमने
"आई मिस यू" रखा  था ......
ग्यारह बजने में दस मिनट है
तुम्हे हिचकी  आयी होगी !!


टुकड़ा- ए -त्रिवेणी


घर लौटने से पहले उस रात जलाये थे  कागज के कुछ टुकड़े
वो डायरी का पन्ना भी लिपस्टिक लगाकर अपने होठ दिए थे जिसमे  तुमने .....

उस रात  मेरी  छत  ने  सुर्ख  लाल  रंग  से  होली  खेली  थी











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