2010-02-19

एक चौरस खिड़की...वक़्त की उस डोर का सिरा अब भी थामे बैठी है .....

पैर के  नीचे तकिये को ठीक करके मैने उचककर  उस  खिड़की से नीचे झाँकने की कोशिश की है  .....एक पतंग  कटकर गिरी है ....बड़ी वाली.गिलासटा ..दो मिनट हो गए है कोई लेने नहीं आया ....पिछले दस दिन से वही खिड़की  मेरी बाहरी  दुनिया है ... प्लास्टर के नीचे खुजली बहुत लगती  है .मै स्केल लेकर  खुजाता हूं ...मां अभी भी काम से लगी है   .जब से  पैर  में प्लास्टर चढ़ा है वो मुझे ज्यादा प्यार करने लगी है ...ग्लूकोज़ के बिस्किट देती है.....नीचे बहादुर से कंचे वाली बोतल भी मंगा कर देती है ....मुझे कंचे वाली बोतल बहुत अच्छी लगती है . बड़ी साइकिल चलाते चलाते मुझे चोट लगी है ..दाये पैर  में फ्रेक्चर है ....सुनील भैय्या ने टेप चला दिया है ....
ली नंबर चार ...थापर नगर के उस बड़े मकान के वो चौथे किरायेदार है ..आमने सामने दो  मकान ऊपर .दो नीचे ...पापा मां को बताते है ...पकिस्तान   से   आये पंजाबी शरणार्थियो ने  ये मोहल्ला   आबाद किया है ....मै    पापा से  "शरणार्थी "का मतलब पूछता हूं .....वे कई बार बता चुके पर मेरी समझ नहीं आता.....
सुनील भैय्या   हमारे सामने रहते है ..........दस दिन पहले ही उनकी शादी हुई है ..मेरे प्लास्टर वाले दिन...शादी में उन्हें टेप मिला है .....पिछले छह दिन से वो सुबह से एक ही केसेट चला देते है ....सनम तेरी कसम .....मुझे गाने याद हो गए है ....नयी भाभी को मैंने दो बार देखा है. ...उन्हें दूसरा  कमरा  मिल गया है ....जब मां आँगन में मुझे नहलाती है ...तो वो भी  अपनी खिड़की से मुझे देख मुस्कराती है .. उनके .माथे पर बड़ी बड़ी बिंदी.है......हाथ में.ढेर सारी चूडिया  है  .....माँ तुम ऐसी बिंदी क्यों नहीं लगाती....मै मां से कहता हूं तो मां डांट कर चुप करा देती है..मै  रोज मां को  बाथरूम में  नहलाने को कहता हूं ...पर मां मानती नहीं ....
नीचे ब्लेकी पतंग से खेल रहा है ......फाड़ देगा ....मै खिड़की से" शै शै "करता हूं .......ब्लेकी सामने वाले होमियोपेथिक डॉ का कुत्ता है ...जब से  खुजली हुई   है  डाक्टरनी  उसे घर में घुसने नहीं देती है .पर ब्लेकी दिन रात यही रहता है.......रात को  घर में घुसने को  कूं कूं  करता है...पहले मुझे  उससे डर लगता था .... आजकल  वो मेरे  बिस्कुट का पार्टनर है .........डॉ अंकल को मैंने दो बार   चुपके  से उसे रोटी  डालते  देखा है ... .... दूसरा गाना शुरू हो गया है ....निशा आ हा आ हा .....
 बिट्टू आया है ...बिट्टू कभी मेरे घर पर अपना गेम लेकर  नहीं आता ...इन दिनों माँ कोई भी  चीज़ मांगने पर घर में सबको एक  ही बात कहती   है ....कहती है" मकान बन रहा है ."...मुझे समझ नहीं आता के मेरे गेम के आने से मकान का क्या सम्बन्ध है ...
  प्लास्टर उतरने का दिन है ...काटने वाले की मशीन से मुझे डर लगता है के कही वो मेरा पैर ही न काट दे ...कितना पतला पैर निकला  है .सूखा सा .माँ रोज पैर पे  तेल की मालिश करती है ....सर्दिया  आने लगी है ....एक महीना गुजर गया है....मुझे बड़ी  साइकिल से डर लगता है ...मुझे  बिट्टू जैसी छोटी   साइकिल  चाहिए  भले ही उसपे   घंटी न हो ....  . टोकरी न  बनी हो ....पर छोटी   हो......मकान फिर बीच में आ जाता है ...मेरी मां से लड़ाई हुई है ....
पापा  रोज दिल्ली से रात में आते है ..उनका ऑफिस  दिल्ली में जो है .....मै रजाई में दुबका हूँ .आंख मीच कर ..वो रोज  की तरह खाना खाकर .  कागजो में उलझे   है ..अपनी खाकी फाइल  लेकर .....वो फाइल  पापा हमेशा ताले में रखते है ...सन्डे को  सारा दिन उनके साथ रहती है ....उसमे अजीब से कागज है ...पोस्ट ऑफिस ...ऐसे  से  कुछ ....माँ कुछ मेरी साइकिल की बात कर रही है ....मेरे कान मुड गये है .....पापा सिर्फ हां -हूं में जवाब दे रहे है .थक कर .मै सो गया  हूं.....
उन सर्दियों  का रविवार ...दोपहर ढाई बजे ...
पापा ने मुझे आवाज दी है ..उनके पास एक नयी साइकिल  खड़ी  है ...घंटी वाली .लाल ....उसके आगे टोकरी भी है ..."...वे मुझे साइकिल पर बैठा कर  खड़े है ....ब्रेक लगायो....ब्रेक वे पीछे से चिल्ला रहे है .....मै ब्रेक लगानी हमेशा भूल जाता हूं .....
साल २०१० का एक  रविवार सुबह नौ    बजे ......
मै चाय का कप हाथ में लिए बाहर आया हूं ...नीचे गली में .पापा आर्यन के  साथ उसकी साइकिल में पिछले आधे घंटे से उलझे है ..प्लास ओर चाभी लेकर  ..उसकी टोकरी ओर कोई नट बोल्ट ठीक कर रहे है ..थोड़ी देर में . साईकिल  फिट घोषित होती है . .....आर्यन घंटी बजा कर निकला है "ब्रेक लगायो....ब्रेक" पापा चिल्ला रहे है ....

सफ्हे दर सफ्हे कुछ देर   ठहरती  है
.....
कुछ लफ्ज़ टटोलती है ..कुछ हर्फ़ पलटती है .….
हर शब एक नज्म अपनी शनाख्त करती है

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