2010-07-01

सुनो खुदा !तुम्हे छुट्टी की इज़ाज़त नहीं है

हिल रोड के उस चर्च के बाहर जूते उतारने की कवायद नहीं है ….आलस में उस कवायद का बेजा फायदा उठा कर..मै  कैमरा हाथ में लिए जूते पहने अन्दर चला जाता हूँ....आर्यन  अपने सेंडिल से उलझा  मुझे आवाज दे रहा है ......मै उसे अनसुना कर भीतर चला गया हूँ. बेंचो पे कितने लोग बैठे है ..... अपनी अपनी उम्मीदों ...ख्वाहिशो ....गमो को अंडरलाइन  किये हुए…. यहां मोमबत्तियो की सिफारिश है .. ...झुके हुए सर   में ज्यादा   उम्र दराज लोग है .....अक्सर पचास के बाद ही खुदा की तलब ज्यादा  लगती है  आदमी को....डेमेज कंट्रोल एक्सरसाइज़ !.. खुदा!      किसने किया होगा उसका नामकरण ?.  रोज कितने कितने क्रिटिक्स  के दरमियां से गुजरना पड़ता है .. उसे..पढ़े लिखे……बहुत पढ़े  लिखे ... ....बे पढ़े क्रिटिक्स.........जिनकी थेंक्स गिविंग की आदत नहीं है......
 .इतने साल बाद भी  शायद   एक दिन वास्ते   भी ….खुदा को   परफेक्ट डिकलेयर  नहीं किया गया …. ..शेखर   कहता था ...आदमी ने  अपनी रूह की रिपेयर वास्ते   गेराज.खोले है .अलग अलग नामो से……जिसके मेकेनिक को कभी छुट्टी की इज़ाज़त नहीं  !

.....सामने रखी बेंच पर कुछ देर बैठ डिज़िटल कैमरे से मै कुछ फोटो लेता हूँ...यहाँ वहां घूम के हम सब बाहर निकले है ....सड़क के उस  पार चर्च के सामने शायद एक प्रार्थना  स्थल है ...वहां की कुछ फोटो लेकर हम गाडी में बैठे है ...ड्राइवर को बेंड स्टेंड जाने के निर्देश मिले है .....मेरा मोबाइल बजा है ...लम्बी बातचीत है ....बेंड स्टेंड आ गया है….
समंदर की लहरे उछाल मार रही है .. हाई टाइड की सम्भानाये पिछले कई दिनों से है...मुंबई अब बादलो के इकठ्ठा होने से  डरने लगा है......कुछ किनारों पे कई जोड़े प्रेम का दुस्हासिक प्रदर्शन कर रहे है ...उनसे दूर   एक कोने  पर .मै  आर्यन को   आगे चट्टानों पे ले जाना चाहता हूँ ....वो कुछ अनमना सा है ......कुछ गुस्से में .....
आपने अच्छा नहीं किया .......

मै उसकी ओर देखता हूँ.....

जूते पहनकर कर कोई मंदिर में जाता है
?


मस्जिद की सीडियो पर ...चढ़ते चढ़ते
उदास आँखो से देखता है
दूर गली के कोनो पर
नीले हरे लाल
कितने रंग बिरंगे 
मोती बिखरे है वहाँ
झुकता है सजदे मे
जब उसका सर
जेब मे पड़े काँच
खनक जाते है
कितनी सर्द ओर बोलती निगाहे
जम जाती है उसके चेहरे पर
घबरा कर आँखे बंद कर
जाने क्या क्या बुदबुदाता है......
यूँ भागता है फिर
गली की जानिब………
कहते है
उसकी दुआओ मे सबसे ज़्यादा असर है
" खुदा
तेरा नन्हा नमाज़ी कन्चे खेल रहा है.......





पुनश्च:
उन चट्टानों के इर्द गिर्द तमाम शोर गुल में .एक कोने पे ...एक घायल कौवा है.....खुले घाव लिए....दूसरे कौवे बारी-बारी  से आ रहे है ....नोचकर जा रहे है .......वो जिंदा है .पर प्रतिरोध की हालत में नहीं है .....मेरे साथ बैठा  दीपक एक पत्थर उन कौवो को मारने के लिए उठाता है ...."रहने दो बेटा...ये कुदरत का नियम है ......".कुछ दूर बैठे एक बुजुर्ग उसे रोकते है ......कुदरत का नियम ?
 .आदमी कितनी निष्ठा से इस का पालन कर रहा है ना!

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