2010-11-22

इत्तेफाको के रिचार्ज कूपन नहीं होते दोस्त !!!!


हैदराबाद का एयरपोर्ट शहर से काफी बाहर है ....पर जल्दी आना यहाँ खलता नहीं है...  ......…..वक़्त अपने आप गुजर जाता है .... सफ़र अपने आप के साथ वक़्त बिताने का एक बेहतर जरिया है ...इंट्रो स्पेक्शन का भी.....  बोर्डिंग पास लेने की  लाइन पर  एक कपल है आगे ....लड़के ने.. रीबोक के शूज़ पहने है ....ब्लू जींस .....टी शर्ट पर लिखा है....आई एम् बोर्न फ्रीसाथ में….सर से पैर किसी कपडे से लिपटा पूरा जिस्म.है........झांकती दो आँखे बस.... मुझे अभि  याद आता है .....कहता था....औरतो के पैदा होते ही  रवायते बर्थ सरटिफिकेट के साथ स्टेपल हो जाती है ...
.दुनिया भर में  घूमने का शौक है उसे ...  ऐसे लोग  गुल्लक की माफिक होते  है ...ढेरो तजुर्बे अपने भीतर जमा किये..........चेक इन के बाद किताबो की एक शॉप में कुछ वक़्त गुजार कर मै एक जगह तलाश कर बैठा हूँ ...हाथो में अखबार लेकर ....कोंफ्रेंस में अकेले आना ..सफ़र करते वक़्त  ज्यादा महसूस होता है ...एक नजर आस पास दौडाता हूँ...कानो में हेड फोन लगाये एक लड़का बराबर में बैठा है.....दूसरी ओर मोहतरमा मोबाइल में उलझी है .अंग्रेजी में बात करती...बीच में बीच में तेज तेज कुछ शब्द कान में  पड़ते है...   ...ओह आई मिस यू टू.बेबी......तकरीबन  हर पांच  मिनट बाद .....सामने बैठी गुजराती फॅमिली में से एक १२ -१३ साल की लड़की हर बार इस "मिस यू " को सुनकर अपने प्ले स्टेशन से आँख ऊपर उठाती है...एक मिनट देखती है ....फिर खेल में लग जाती है .....प्रति व्यक्ति आय दर २० रुपये से कम......केपरीकोन राशि वाले ज्यादा रोमांटिक होते है ....करन जोहर के मुताबिक हिन्दुस्तान में राइटर की कमी है .......सारे पेज पलटकर मै  अखबार से  बाहर  निकलता  हूं  
ख़ूबसूरती अपना स्पेस भीड़ में भी तलाश लेती है ... एक.गोरा  गोल चेहरा ...बड़ा सा जूडा  .माथे के ठीक बीचो बीच एक बड़ी सी गोल बिंदी.....काली साड़ी.जिसके  बोर्डर पे लाल रंग है ... चलता आ रहा है ..साथ चलने वाले जैसे बेक ग्रायूंड में है....कहते है खूबसूरत लोगो को अपनी ख़ूबसूरती  का इल्म होता है ......उसे  भी है .. मेरे  सामने  दायी  ओर तीसरी   सीट खाली है .....वे नजरे  इधर  उधर घूमतीमुझ पर रुकी है ....  ....आधा मिनट.....अभी भी रुकी है .....मै थोडा असहज होने लगा हूँ......हिम्मत   करके उन आँखों   का पीछा   करता हूँ.... वे ब्राउन आँखे है ..... ब्राउन ……..... एयरपोर्ट  ने मुझे फिर यकीन दिलाया है के दुनिया गोल है ..... उन  होठो पे मुस्कराहट आयी है….जानी पहचानी मुस्कराहट. ...
मै ब्राउन आँखों संग   कई साल पीछे दौड़ जाता हूँ......
 ब बी एस एस  ए लार की तारो वाली साइकिले हमारे लिए सिटी होंडा सी थी.....हमारे गेंग की आवश्यक शर्त भी....मूंछे बेतरतीब सी उग रही थी....रोज रेजर पे एक उम्मीद भरी निगाह दौड़ती थी .ओर कशमकश के  साफ़ करूँ या नहीं...... संजीव ओर मैंने लगभग साथ साथ साइकिले खरीदे थी ...फर्क इतना था उसकी मे गोल्डन लाइने थी .....स्कूल जाने से पहले उसके घर के बाहर..... १० मिनट खडा होना मेरा रोज का नियम था......दस मिनट इसलिए   के  वो टॉयलेट    में सबसे ज्यादा वक़्त लगता......फिर आधी कमीज पेंट में खोंस्ता हुआ सोरी -सोरी   कहता हुआ बाहर निकलता..उसी वक़्त .उसकी गली में  दो सहेलिया भी अपने स्कूल रवाना होती.. ब्लू ड्रेस  ओर स्कर्ट  पहने .रेड टाई के साथ.....लडकियों के  बेस्ट कोंवेंट स्कूल सोफिया की ड्रेस थी वो ..मेरे पास से से  गुजरते वक़्त पता नहीं  क्या बुदबदाती  ओर खी  खी करती . उनमे से. ब्राउन आँखे वाली  अक्सर  गली के किनारे  पहुंचकर  पीछे मुड़कर देखती फिर हंसती .... ..मै कई बार टाइमिंग  चेंज करता ..  पर उनकी खी खी रोज मेरी पीठ पे चिपक जाती .....झुंझला कर मै   संजीव पे गुस्सा  होता….. मुझे लगता वो  हमारे हिंदी मीडियम में होने पर हंसती है ...
घमंडी है ....कोंवेंट वाली है न ....

. वो रास्ते में मुझे  बताता
माँ   शहद मिला दूध देती है रात को.....इससे कब्ज नहीं होगा बताता ... जाने कौन सा  शहद था.... पिछले छह महीनो से बे असर था...... 
"साले फीते बाँध लिया करो .किसी दिन बड़े जोर से गिरोगे ...संजीव कहता है .पर मै फीतों को ठूंसकर जूतों में फंसा देता हूँ....मुझसे फीते बंधते नहीं
 र्दिया बहुत अच्छी लगती है ....बस सुबह के उस हिस्से को  छोड़कर जिसमे पापा की पहली आवाज को जानबूझ रजाई से  ओर ढका जाता ....गर्म रजाई को छोड़ना बड़ा तकलीफदेह  काम है  ...मां रोज पानी गर्म करती है ओर मै सिर्फ हाथ मुंह धोकर बाहर निकल आता हूँ....वे धीमे से रोज कहती है ...आज छोड़े दे रही हूँ...कल नहा लेना .शुक्र है पापा का बाथरूम दूसरा है.......
सर्दियों में वो रोज होमियोपेथिक की तीन चार दवाइया चलने से पहले गटकता ...कभी कभी उन सफ़ेद मीठी गोलियों को मै भी ले लेता..उस रोज आफती  धुंध है ..  ....हम मुंह से धुया निकाल कर धुंध से मिला रहे है ... हाथो में  ठण्ड लग रही है ...इसलिए   एक हाथ  जेब में है .......मां  के बुने  ग्लोव्स मुझे फेशनेबल  नहीं लगते .मुझे लेदर के ग्लोव्स चाहिए ...काले ....जैसे हमारी क्लास के नीरज के है ...पर पापा सुनते नहीं ... "तुम्हे  जिद सूट  नहीं करती ' वो अक्सर कहता है .....धुंध में ही हमें जानी पहचानी दो परछाईया दिखने लगी है .....ब्लू ब्लेज़र ....व्हाईट जुराबे ...घुटनों तक.....
आधी धुंध में वे दोनों साइकिल रोके खड़ी है..कुछ परेशां सी....फ़ौरन साइकिल
पर नजर आती है .चेन उतरी हुई है ....कुछ फंसी हुई सी..... 
तुझे कसम है.. गर तू रुका तो....मै पहले ही उसे चेतावनी
  देता हूँ......देखना मत....
पागल है यार .उनका इक्जाम है ...देख कितनी रुआंसी हो रही है ...वो नजदीक आते आते धीमे से फुसफुसाता है

सीधा चल
  .....मै फुसफुसाता   हूँ.....बेक ग्रायूड में उनकी हंसी अब भी मेरे सर में सवार है ...
एक्सयूज़ मी.......कानो में कुछ सुनाई दिया है ....या शायद मेरे मन का
वहम............पर मैंने साइकिल तेज भगा दी है ......ओर तेज........ओर तेज......सर्दियों में भी मेरे माथे पर प"तुने कुछ सुना ".वो कहता है "उन्होंने शायद रुकने को कहा था ....".
नहीं तो ....मै झूठ बोलता हूँ

अच्छा है अकड़ ढीली होगी आज .मै
  कहता हूँ.....पर... जाने क्यों मन थका थका सा ..खाली है..  एक अजीब सी गिल्ट  ब्लेज़र पर  जम गयी  है .....जाने क्यों भारी लगने लगा है
हमें रुकना चाहिए था यार  .”...स्कूल के साइकिल स्टेंड पर साइकिल खड़ा करते वक़्त वो कहता है ..... मेरा ब्लेज़र ओर भारी हो गया है..
करीबन १५ दिन बाद ...किशोर एक पर्पोज़ल लाया है ..सोफिया में फेयर है ...सिर्फ चुनिन्दा स्कूलों को इनविटेशन है ...कोट पेंट ओर टाई का जुगाड़ वो कर लेगा ...हम पांच लोग है .. थ्रिल ओर  डर के मिले जुले   परसेंटेज पर इच्छाये ओर लड़कपन हावी है सो... उस जोखिम  को. उठाने की सामूहिक हामी भरी जाती  .. है.
धडधडाते दिलो से हमने  फेयर के  अन्दर एंट्री कर ली है .सेंत जोन्स में किशोर के दो दोस्त है शुरूआती मोरल सपोर्ट के वास्ते वे कुछ देर साथ है ...मै ओर संजीव आहिस्ता -आहिस्ता एक चौकन्नी बेफिक्री के संग उस ग्रुप से   अलग होते है...ठेठ बोयस स्कूल से पोलिश कोंनवेंटी  लडकियों के बीच पहुंचना भला सा लग रहा है ..कुछ मिनटों के बाद एक स्टाल हमें अपनी ओर खींचता है ..बन्दूक से गुबारे फोड़ने  पर इनाम है  ... हम दोनों दोस्त से पहले दो लड़के ट्राई  कर रहे  है .. स्टाल  वाली लडकिय चीयर्स करती है ..ऐसे प्रोत्साहन कम्बखत ओर नर्वस करते है ...मेरा नंबर आने तक हाथ  पसीने से भर गया  है ... पहले चार  शोट ठीक लग गए है ...मुझे तीन ओर निशाने मारने है...पांच शोटो में से ..आँख  निशाने की ओर साधते वक़्त  जाने क्यों किसी जानी पहचानी नजर को दाई ओर महसूस करता हूँ ....शोट लगाते ही उस ओर देखता हूँ.....ब्राउन आँखे वहां खड़ी है .....शोर मचा है ...शोट ठीक लगा है ...
"चल "पीछे से वो मेरे कान में फुसफुसा रहा है ...पसीने को हाथो से पोंछ जाने  क्यों मै अगला शोट ले लेता हूँ...मन में भगवान् को याद करता हुआ ...भगवान् जी सुन लेते है ..
ब्राउन आँखे हिली नहीं है ...आखिरी शोट है ....आँखे बंद करके वो तुक्का सही बैठ गया है......
मैडम आयी है ..वहां फुसफुसाहट शुरू हो गयी है .....बन्दूक थामे मै किसी मैडम को नजदीक खड़ा देखता हूँ.....
"मैडम . आप प्राइज़ डिस्ट्रीबूट करेगी.."....स्टाल वाली दोनों लडकिया मैडम से रिक्वेस्ट कर रही है ....ब्राउन आँखे चलकर नजदीक आयी है .....तो स्टाल उसका भी है ....
मैडम मेरी ओर मुड़ी है ".वेल डन  माय बॉय" .चश्मा ठीक करके वो मेरे कोट से स्कूल का नाम पढने की कोशिश कर रही है .....
"कौन सी क्लास में हो ...."
मेरी पीठ पर पसीने की एक पूरी लहर पैदा हुई है ओर ऐसा लगता है जैसे मेरे दिल की धड़कन वहां सबको सुनाई दे रही है .....धक्.. धक्
 १२ डी मैडम ...मेरी आवाज ओरिजनल नहीं है ....
गुड मैडम मुझे एक पैकट पकड़ा रही है ....
 मै ब्राउन आँखों को देखता हूँ.....वे मुस्करा रही है ....
उस दिन पहली बार मैंने उसकी आँखों को इतनी देर तक देखा है ...नजदीक से .....वे कितनी सुन्दर है ! मै थैंक-यू कहना चाहता  हूँ ...पर वो मुझे घसीट कर ले जाने लगा है ..... किशोर की किसी से लड़ाई हो गयी है ...पोल खुले  उससे पहले हमें निकलना होगा ......हम निकल गए है!
 उसके बाद की दुनिया मसरूफ है ....१२ में हमारा आखिरी साल .बोर्ड का इक्जाम ...संजीव को सिविल सेवा में जाना है .ओर मुझे मेडिकल में ..हम जानते है ...हमारे रस्ते आगे जुदा होने है ........अगले दो सालो में  मेडिकल एंट्रेंस मेरी   प्राथमिकता  है ....सो उस दुनिया के सफ़र के वास्ते फिलहाल संजीव से उतनी फ्रीक्वेंट मुलाकाते नहीं है .....
 ब्रायून आँखे फिर कभी मिली नहीं.....
 इंदोर जाने वाले यात्री ....कुछ अनायूसमेंट हो रहा है .वो खड़ी हुई है ...एक छोटा बेग लिए वो आहिस्ता आहिस्ता .....चल रही है ...मेरे पास एक सेकण्ड के लिए रुकी है ...नीचे देखती है ....फिर मुस्कराती है .........जहाँ तक नजर जाती है मै  आँखों  से  उसका पीछा करता हूँ....... फिर वो भीड़ में गुम गयी है ...संजीव का नंबर   मोबाइल पर मिलाते   मेरी निगाह नीचे अपने जूतों पर गयी है......फीते अब भी खुले है

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