"सोचता था जब चालीस का हूँगा जिंदगी का
जायका जबां पे होगा, रोजो- शब् के पेंच उलटे नहीं घूमेगे . किसी शख्स का कोई करतब हैरान नहीं करेगा . ऐब उबाने
लगगे . दोस्त पहले की तरह अज़ीज़ होगे . हाथ की जुम्बिश से
तहरीरे लिखूंगा . फरिश्तो के नंबर मेरे मोबाइल में सेव होगे
ओर सैंकड़ो दास्ताने लाइब्रेरी में . कंप्यूटर में दर्ज होगे
कई मुश्किल लम्हों के हल ओर एक ऐसा फोल्डर जिसकी तफसील तब भी किसी से न
कहूँगा .
पर मुए डेस्टिनी के चाबुक खलल डालना नहीं भूले . गुमानो के कद मापता हूँ तो उत्ते ही ऊँचे है , नकाबो पर सेल अब भी नहीं लगती, अलबत्ता आईना किसी ओर शक्ल को दिखाने लगा है !
पर मुए डेस्टिनी के चाबुक खलल डालना नहीं भूले . गुमानो के कद मापता हूँ तो उत्ते ही ऊँचे है , नकाबो पर सेल अब भी नहीं लगती, अलबत्ता आईना किसी ओर शक्ल को दिखाने लगा है !
तुम्हारी दुनिया उतनी ही पुरइसरार है खुदा !
देखो ना ........इतने सालो में बहुत कुछ है जो नहीं बदला न तुम, न मै !!
चीयर्स !!