वे पूछती है पांचो वक़्त नमाज पढ़ने वाले आदमी को कैंसर कैसे हो सकता है ?उन्होंने तो ज़िंदगी में कभी किसी का बुरा नहीं किया ?
मै उन्हें क्या जवाब दूँ।
मेरे पास कोई जवाब नहीं है.
आदमी जब गम में होता है तो उसे जवाब की तलाश होती है !
खुदा पे एतबार करने वाला अपनी नेकी बदी का हिसाब टटोलने लगता है।कितने कुर्तो की जेबी में उदासी छुपी हुई है। बूढी उदासी ,जवान उदासी !कुछ उदासियों से मुकाबला किया जा सकता है ,कुछ से नहीं।
कोई पूछता है "साइंस दानो के रहते उदासी को ख़त्म करने की कोई दवा ईज़ाद नहीं हुई "?
मेरे पास इसका भी जवाब नहीं है !
मेरे एजेंट मुझे बीमे की तारीखों को गिनवाता है मार्च का महीना है। हमने अपनी अपनी तसल्ली के लिए इंतज़मात कर रखे है।
उसकी बोसीदा सी डायरी को देख मेरा मन करता है मै उससे कहूं के वो इसे बदल ले, पर कहता नहीं।
बहुत सी बाते कभी कही नहीं जाती ! वे भीतर ही रह जाती है। सर्दियों में एक दफा कॉलेज से घर आते लौटते ट्रेन में सामने वाली सीट पर बैठी किसी उम्र दराज महिला ने रात में मुझ पर अपना कंबल डाल दिया था ,मै उन्हें जानता नहीं था। सुबह आँख खुली थी वो बैठी हुई थी।
मुझे तो नींद नहीं आती ,बैठना था सो "
वे बोली थी।
मैंने कोशिश की थी के मेरे शुक्रिया में उन्हें मेरी आवाज के भीगने का इल्म ना हो पता नहीं मै कितना कामयाब हुआ था या नहीं। उस रोज घर लौटकर बस मै मां से लिपटा था।
मै उन्हें क्या जवाब दूँ।
मेरे पास कोई जवाब नहीं है.
आदमी जब गम में होता है तो उसे जवाब की तलाश होती है !
खुदा पे एतबार करने वाला अपनी नेकी बदी का हिसाब टटोलने लगता है।कितने कुर्तो की जेबी में उदासी छुपी हुई है। बूढी उदासी ,जवान उदासी !कुछ उदासियों से मुकाबला किया जा सकता है ,कुछ से नहीं।
कोई पूछता है "साइंस दानो के रहते उदासी को ख़त्म करने की कोई दवा ईज़ाद नहीं हुई "?
मेरे पास इसका भी जवाब नहीं है !
मेरे एजेंट मुझे बीमे की तारीखों को गिनवाता है मार्च का महीना है। हमने अपनी अपनी तसल्ली के लिए इंतज़मात कर रखे है।
उसकी बोसीदा सी डायरी को देख मेरा मन करता है मै उससे कहूं के वो इसे बदल ले, पर कहता नहीं।
बहुत सी बाते कभी कही नहीं जाती ! वे भीतर ही रह जाती है। सर्दियों में एक दफा कॉलेज से घर आते लौटते ट्रेन में सामने वाली सीट पर बैठी किसी उम्र दराज महिला ने रात में मुझ पर अपना कंबल डाल दिया था ,मै उन्हें जानता नहीं था। सुबह आँख खुली थी वो बैठी हुई थी।
मुझे तो नींद नहीं आती ,बैठना था सो "
वे बोली थी।
मैंने कोशिश की थी के मेरे शुक्रिया में उन्हें मेरी आवाज के भीगने का इल्म ना हो पता नहीं मै कितना कामयाब हुआ था या नहीं। उस रोज घर लौटकर बस मै मां से लिपटा था।