2019-12-13

खुदगर्जी का दिसंबर

दोपहर की शिफ्ट के बाद गाड़ी में मोबाइल आवाज देता है। उस पार अब गुडगांव में रहने वाला दोस्त है।एक उम्र के बाद गमे रोजगार के वास्ते सबके हिस्से अलग अलग शहर आते है । मैं अंकल को याद करता हूँ ,बहुत डरते थे हम उनसे PMT के दौरान ।
"पापा पिछली दफा आये थे तबसे सर्दियों में नहीं आते" वो बोल रहा है "कहते है तेरे फ्लेट में सूरज एक जगह पर पांच मिनट के लिए आता है वो भी तीन बजे के बाद "
हम दोनों हँसते है !
सूरज भी ज़िन्दगी में कितना लाज़िमी है ना ! ज़िन्दगी में बहुत सी चीज़े लाज़िमी होती है।
"वो पोस्ट ऑफिस याद है" , जहाँ से हमने कंपीटिशन के कितने फॉर्म भर कर रजिस्टर्ड डाक से भेजे थे "
"हाँ ,अचानक कैसे याद आया ?"
उसका पोस्टमास्टर हमारे ही हॉस्पिटल में एडमिट है ,सुबह राउंड ले रहा था तो उसने सामने वाले बेड से आवाज दी।
सिस्टर ने उसे टोका कहा ये "तुम्हारे डॉ नहीं है "तो वो बोला
"हमारे ही है डॉ साहब मेरठ से है ना ! "
उसका बेटा यही गुड़गांव में है। पूछ रहा था आपके साथ जो दूसरा लड़का आता था क्या वो भी डॉ बन गया ?
खुदगर्जी के सफ़र में ऐसे फोन कॉल ठिठका देते है .

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