2008-12-25

कागजो मे बंद कुछ सालो का कोलहाहल

सा 1993.....तारीख इंक की रोशनी से फ़ैल गयी है -
दिल्ली की भीड़ भाड़ से भरी डी. टी. सी बस में जींस टॉप पहनी लड़की एक सरदार की निर्लज उद्दंडता को भयभीत हो कर सहन करती है ओर बेढंगी सी पोशाक पहनी देहाती औरत जोर से उसे फटकार कर भगाती है ....हमारे साथ एम्स के "पल्स "में भाग लेने आयी गुजराती लड़किया सहम जाती है ,बस इन सबसे बेपरवाह आगे जाकर किसी मोड़ पे रूकती है कुछ अंग्रेजो को सड़क पे देखकर कन्डक्टर जोर से आवाज लगाता है "वेलकम टू देल्ही"


सा  96......रात के दो बजे
अचानक हॉस्टल में हलचल हुई है .उनीदी आँखों से सीडियो पर बदहवासी सी फैली है ...उसे मोटरसाइकिल पर दो लोग पकड़ कर बिठा रहे है.....हॉस्पिटल ले जाने को.....उसने आत्महत्या की कोशिश की है ... ..१५ दिनों से गुमसुम था ..उसकी गर्लफ्रेंड की शादी कही ओर तय हुई है.....5 साल से लंबे अफेयर के बाद .सुना है जिससे तय हुई वो आई .. एस में सेलेक्ट हुआ है.....मुझे बोलीबाल के मैदान में उसका हँसता चेहरा याद आता है....

सा  97 .....
हाल पर "मदर इंडिया ' लगी है ,मै ओर मेरा दोस्त जो मेरी तरह फिल्म देखने का शौकीन है ....इस पुरानी ऐतिहासिक मूवी को देखने गये है ..सीमित  टेक्नोलोजी का वो सिनेमा भीतर रूह तक चहलकदमी करता है....इस माध्यम की ताकत मुझे इंटरवेल में भी सीट से उठने नही देती .... मै अपने दोस्त से छुपाकर अपनी आँखों की नमी पोछता हूँ ...
वापस आते हुए मै ओर मेरा दोस्त खामोश है....चाय की लारी पर सिगरेट पीते हुए वो मुझे बताता है...महबूब खान अनपढ़ थे .....

सा  99......
आज वार्ड में बेड नंबर ५ की मौत हुई ...३५ साल की उम्र में ....४ साल की उसकी बच्ची की आँखों का सामना नही कर पाया .."स्टीवन जोहानसन सिंड्रोम" था उसे ....जब केस कम्प्लीकेटेड हुआ तब यहाँ रेफेर किया गया ...आई सी यू में जगह खाली नही थी ...कई मरीज जमीन पर है......पता नही क्यों लगा जैसे बच सकता था वो अगर ....
सिस्टर से भी झगडा हो गया ...उसकी बच्ची की आँखे जैसे अब भी ताक रही है ....गरीबी को पुश्ते दर पुश्ते  ढोती है ......

सा  99 year end -रात डेड बजे
सौरभ भी यू .के उड़ गया ....बेड मिन्टन का आखरी मैच खेला उसके साथ ....साला बेईमानी करता है पर आज बुरा नही लगा ...रघु भी जायेगा पास होकर ...आज सौरभ को फेयरवेल दी रेस्ट्रोरेन्ट में.....कहते है तू भी आ जा वही...क्या करूँ .फोन पर पापा सेंटी होने लगे है ..कहते है एक जगह देखी है क्लीनिक के लिए हाँ कहे तो खरीद लूँ..मना किया तो उदास से हो गये थे ....बस इतना कहा...अपना देश अपना होता है बेटा.....
सा २००० -
२४ साल उम्र होगी उसकी बस......कितनी सुंदर है गोरी चिट्टी .....कोई कह सकता है एच .आई .वी है उसे...शादी को एक साल हुआ है ओर प्रेग्नेंट भी है...... पति से मिला है....पर बच्चा फ़िर भी चाहती है...अबोर्शन को तैयार नही है ..काउंसिलिंग के लिए आयी थी... अभी कुछ symtom तो नही है ....उसके पति को मालूम था तो शादी क्यों की.....
सा २००० आखिरी महीने .मुंबई नानावटी हॉस्पिटल -
तुम्हे तो मारीशस नही जाना ?मेरा क्लास मेट ही वहां प्रिंसिपल है ..कहो तो बात करूँ ...डॉ राव कई दिनों से कह रहे है ...
आज डॉ राव के यहाँ डिनर पे गया था.....मैडम बोली यही आ कर रहो....वहां क्या 4 बाई 4  के कमरे में रहते हो ..वो भी अस्पताल में .....यहाँ इत्ते बड़े घर में हम दो बूढों के अलावा कोई नही है ......डॉ राव व्हिस्की पीने के बाद भावुक होगये थे ..अलमारी से अपने पोते की फोटो ले आये थे ....बोले दादा नही कहता ग्रैंड पा कहता है...हँसते हँसते बोले ...दोनों बेटो को तभी याद आती है माँ की जब बीवी प्रेग्नेंट होती है.
 जब चलने लगा था कैसे गंभीर होकर बोले थे ..."माँ बाप के पास ही रहना"!
साल २००१ -कॉलेज छोड़ने के महीने बाद -
सोचा था इस " बाहर की दुनिया का लेंडस्केप "अलग होगा पर यहाँ के रंग इतने रहस्यमयी है की डर लगता है खो जायूँगा .

सा  2004...पूना हवाई हड्डा....कांफ्रेंस से लौटते वक़्त -
कोई मुझे जोर से नाम के आगे" भाई "कहकर आवाज लगाता है...इस तरह तो गुजरात में बुलाया करते है ,पीछे मुड़ता हूँ सफ़ेद कुरते पजामे ओर कंधे पर कपड़ा रखे हुए है असलम है ...६ फीट लंबा असलम अपने साथ दो चार शार्गिद लिए हुए है ..गोरे चेहरे पर बढ़ी दाढ़ी में वो मेरे कंधे पर हाथ मारता है ,मै असहज हूँ ...कोई काम हो तो बताना अनुराग भाई ...कोई भी काम हो तो......तुम्हारा वतन कौन सा है .....भाई आजकल बहरुच से एम् एल ऐ है उसका एक शार्गिद बताता है ...मुझे प्रिस्नर वार्ड का असलम याद आता है जिस पर हत्या के आरोप है पर उसे चिंता अपनी एस .टी. डी (sexually transmitted disease )को लेकर है।

बीच के कई साल कागजो में नही है ......शायद जद्दोजेहद में गुम है

सा   2008....दिन शुक्रवार -
इस "सायबर युग "में जहाँ पैसे ने प्लास्टिक के चकोर टुकडो की शक्ल ले ली है ,तल्खिया शालीनता का लिबास पहने है ,रिश्तो की डोर में शर्तो की गाँठ है ,शहादत का मजहब है ,मीडिया के आइने है , त्रासदियों का बाजारीकरण है  ,मानवीय संवेदनाओ का स्केल एस एम् एस पोल है ओर असली सामाजिक सरोकार मोमबत्तियों की रोशनी में छिपे है , बलात्कार एडिटिंग टेबल से गुजर कर "दलित बलात्कार "हो जाते है.....नैतिकता की अपनी तिकडमें है  ! मै आमिर खान को बाल काटते देखता हूँ  ओर घने कुहरे में जाते साल को भी.


आज त्रिवेणी लिखने का मन नही है ,कल रात एक कविता पढ़ी थी .सुबह तक वही सिरहाने थी .राजेन्द्र कुमार की कविता .."भगत सिंह :सौ बरस के बूढे के रूप में याद किए जाने के विरुद्ध "

वे तेइस बरस
आज भी मिल जाए कही ,किसी हालात में
किन्ही नौजवानों में
तो उन्हें
मेरा सलाम कहना
ओर उनका साथ देना
ओर अपनी उम्र पर गर्व करने वाले बुढो से कहना
अपने बुढापे का गौरव उन पर नयोछावर कर दे ......


(भगत सिंह २३ साल की उम्र में शहीद हुए थे .....महज़ २३ साल .)

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